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शनिवार, मार्च 06, 2010

-----मेरे सुख दुख---

-----मेरे सुख दुख---
मै सोचता ज्यादा हू,
इसलिए कुछ भावुक हू, या भावुक हू इसलिए सोचता हू।
भावनाए, दुख-सुख सोते नही, चाहे आन्खे बन्द भी हो।
विषय अनुराग है, सरस है विषयो की सुलभता सोचना लगा फ़िर दिन प्रति,
सुख मे कोमल तरन्गो से मन प्रफ़ुलित,
दुख के ताड से विलोडित होता।
समता के अभाव मे सुख से दुख और दुख से सुख को खोजता फ़िरता।

1 टिप्पणी:

Mithun Pandey ने कहा…

sochte to sabhi hain, par tu bhavuk ho kar sochata hai
tabhi to teri ankhon main nami abhi bhee baki hai
aur dill bhe dhadakta hai dost

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