फैले दो हाथ हैं, पैर चौड़े,
गुडिया का भालु, सुनो लो कुछ बोले.
पहले पा लो परिचय इसका,
फिर कर लेना इससे बात.
रुई का बना है मेरा मस्त गोल-मटोल,
कपडे एक दम राजसी, आंखे बटन से झोलम-झोल.
कहता है कि गर तुम हो सच्चे,
तो सुन लो बच्चे-कच्चे.
मेरी कोई जात नहीं,
न तो मेरी कोई सीमाएँ हैं.
नहीं कोई कौम मेरा,
न तो कोई नाजी भंगिमाएं हैं.
बस दोस्त जाता, हाथों में आ कर.
इसलिए गर कहता है, तुमसे बनना जग के प्यारे,
पहन लो मेरा नवज्ञान की टोपी जिसमें लगे भाई-चारे के तारे .
हो जाओगे सबसे बढकर,
दोंगे उन भाड मालिकों को मात.
जिनके व्योपार इंसानी चनो को फोड़ना,
और करना देश तोड़ने की बात.
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शनिवार, मार्च 13, 2010
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1 टिप्पणी:
bahut badhiya.. achchha likhate ho.. sab to nahi padhi hain abhi tak, par jitna padha achchha laga.. bhavishya ki rachanaon ke liye shubhkaamanaayen
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