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मंगलवार, जुलाई 05, 2016

१.
वो नाचा मोर
फुहारते बादल
लो नाव बनाएं?
२.
कागज़ कोरे
मोड़ के नाव बनी
मटकती चली



शुक्रवार, जून 21, 2013

हे ईश्वर!

कुछ दिनों से जब-जब समाचार पढ़ता हूँ,
रोज सुबह दिल भर आता है.
उत्तराखंड की तस्वीरें और खबरें पढ़ कर.
ये क्या है ईश्वर?
जिन लोगों ने तुमको सदियों से पूजा, विश्वास किया.
उन लोगों के साथ ही विश्वासघात;
तुम मानव कब बन गए पता ही नहीं चला.

गुरुवार, अप्रैल 04, 2013

कोरिया की कारिस्तानी

नोर्थ कोरिया पागल हो रिया है।
पिद्दी पहलवान ने,
एटम बम हाथ में ले लिया है।
और शौक है जिसे लड़ने का,
उस अमेरिका को,
कितना बढिया मौका दिया है।


वियतनाम, इराक,
अफगानिस्तान के किस्से,
किम जोंग-इल का बेटा, लगता है भूल गिया है।
तभी तो दुनिया को फिर शीत युद्ध में झौंक कर,
अपनी उल्टी भ्रष्ट बुद्धि दिखा रिया है.

बुधवार, मार्च 20, 2013

सड़ता अनाज

कोई तो खेतों से काकभगोड़ा निकाले,
या दे दाने चिड़िया को,
उस गेहूँ का, उस चावल का,
जो हर साल सड़ता गोदामों में।
या बनता फिर शराब,
परोसा जाता मयखानों में।
कोई तो झोपड़े-फुटपाथों से भूख भगाए.
या दे दाने उन इन्साओं को,
जिन पर है उनका नाम लिखा।

मंगलवार, दिसंबर 25, 2012

जन्मदिन मुबारक अटलजी

अटलजी को उनके ८८वे जन्मदिवस पर बहुत बहुत शुभकामनाएँ...
ईश्वर उनको दीर्घायु और सुखी एवं स्वास्थवर्धक जीवन प्रदान करें..

अटलजी की कुछ कविताएँ कभी भी पढ़ लो बेहद समसामायिक(relevant) लगती हैं.
जैसे ये:

कौरव कौन, कौन पांडव
 कौरव कौन
 कौन पांडव,
 टेढ़ा सवाल है|
 दोनों ओर शकुनि
 का फैला
 कूटजाल है|
 धर्मराज ने छोड़ी नहीं
 जुए की लत है|
 हर पंचायत में
 पांचाली
 अपमानित है|
 बिना कृष्ण के
 आज
 महाभारत होना है,
 कोई राजा बने,
 रंक को तो रोना है|
-अटल बिहारी वाजपेयी

रविवार, दिसंबर 09, 2012

चाँद और मंगल पर पानी

वो देश, वो लोग खोजते पानी मंगल चाँद पर,
भेजते मशीनी मानव जाने कितने खर्चीले अभियान पर,
आनंद गीत गाते, उत्सव भी मानते,
दिख जाती हिम सदृश सफेदी स्याह चाँद पर,
और कभी अंतरिक्ष  विजय के सपने भी सजोते,
भेजता तस्वीरें नदी की, लोहपुरुष, बैठा जो मंगल यान पर।

वो देश भेजते क्यों नहीं कुछ मानव,
उस स्याह महादुवीप पर,
जहाँ पर जाने के खर्चे होते बस कुछ सिक्कों भर.
जहाँ होती गर्म और भूख की वायु भयंकर,
होता सूरज होता अपने पूर्ण चरम पर।

हाँ! वहाँ होते भी है कुछ  मानव,
कहना है तो कह दो,
संकोच नहीं, हाँ कह दो खुल कर,
हमने देखे हैं भूख से बने जीवित कंकाल,
हाँ!कह दो हमने पा लिया जीवन यहाँ पर,
फिर उस जीवन को सहज बनाने,
करे कुछ अनुप्रयोग, करे कुछ  फिर खर्चे,
 इस गृह के अन्दर उस अपने जैसे गृह  को खोज कर।

रक्षाबंधन 2018