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शुक्रवार, जनवरी 01, 2010

***** हरी क्रांति ****

पेड़ न कटे, न वाहन उगलें धुआँ यही कामना है मेरी नववर्ष में साथियों,
न कही मिसाइल गिरे न तेल का सागर बने यही सोच-शांति से आगे बढना होगा साथियों .

धरती से जंगल और पानी नदियों से खो न जाए, प्राकृत सम्पदा से हो जाए खाली हाथ,
बहरे बन कब तक जीना है, इसलिए कान खोल सुन ले ये बात.

पेड़ हमें लगाना हो होगा, वाहन कम चलाना होगा,
ओजोन को शिशु के तरह, पालने में होले से झुलाना होगा.

हो गए ओजोन छेद बड़े बड़े, तो शंकर की तीसरी आंख खोल जाएगी,
एक एसिड की बारिश कम है, प्रचंड अग्नि से पृथ्वी प्रलय में समाएगी .

सो जग लो सब सोये सारे, पृथ्वी को अब हरा-भरा करके दिखलाना है,
ग्रीन हाउस गैस, कार्बन उत्सर्जन और हरित क्रांति क्या है, सब को सिखलाना है .

रक्षाबंधन 2018