हर साल आती है १३ मई,
और फ़िर हर साल की १२ मई को कुछ गुप्त मंत्रणा करते हैं, मेरे प्रियजन,
मुझे अचंभित करने को.
हर साल नए स्वाद का केक मिलता है फ़िर; गुप्त मंत्रणा का प्रतिफल.
रात में ही घड़ी के कांटे जब मिल जाते तो,
मेरे पूज्य-मेरे इश्वर ; मेरे माँ और पिताजी मुझे आशीष देते.
सुबह फ़िर ईश-वंदना नया जन्म दिवस देख पाने को.
इष्ठ जनों का शुभकामनाएं लेते लेते गुजर जाता सारा दिन.
रात में जोर पकड़ता जश्न का दौर.
फ़िर नींद में खो जाता, जन्मदिवस उत्सव श्रम को दूर करने.
फ़िर एक नई सुबह; मेरा स्वम्भू नया साल शुरु होता,
नई उम्मीदों; नई संभावनाओ; और नए शिखर को पाने को.
फ़िर एक नए जन्मदिन की राह देखता, मैं.....
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