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शनिवार, मई 10, 2008

टूटते हुए लोग

मिल गयी मेरी कवितायों की कॉपी...

******** टूटते हुए लोग******

कुल्हाडों से कटते-कटते,

धडाम से धम्,

देख लिए टूटते लोग ।

जो टूटे नही उनकी कोपलों कों नोच नोच कर,

उनकी वृद्ध जड़ों को डरा डरा धमकाकर,

उनकी संगनी टहनियों कों छांटते हुए,

सूख जाने दिया एक दिन धम्म से टूट कर गिर जाने कों ।

आस-पास की आँखे बस करुणा से देखती रही सब एक अच्छे दर्शक की तरह ।

जिनकी भाग्यरेखा लम्बी रही वे बच गए टूट जाने से आज ।

कल भाग्य कुण्ड के खाली होते खड़े हो जायेंगे कुल्हडे...

उन्हें टूटने को कर देंगे मजबूर ।

रह जाएँगी हमेशा की तरह दर्शक आँखे, और घोर रुदन ।

केवल अटहास भरेगा कुल्हाडा,

साथ देगा उसका *वेंट जो ख़ुद बना है उन पेडों से ।

(*वेंट - कुल्हाडे या किसी औजार को पकड़ने का हत्था )

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