साक्षी नियति - साक्षी हरिसिंह











पैबन्द लगे कोट पहने,

तांगे पर पहाडिया चढ़कर.

बैरकों से निकाल नव-सांदीपनि निर्माण करते,

हर ईंट-पत्थर-चूने को पसीने से सींचते,

को नियति ने रोक कर पूछा-

हे सरस्वती साधक, लक्ष्मी पालक.

क्या तुम हरिसिंह गौर हो? “

माथे की बूंद को तर्जनी से झटक कर वह बोला-

नहीं, मैं नालंदा का शिल्पी हूँ,  पुनर्जन्म ले यहाँ आ पहुंचा हूँ.

जो भूल वहाँ की थी, यहाँ न दोहराऊंगा,

इस विश्वविद्यालय को अमरत्व-शिल्प से बनाऊंगा.

कई सदियाँ इसको छूकर गुजरेंगी,

और ये बेबाक खड़ा रहेगा.

इसके विद्यार्थी साफल्य-क्षतिज पर चमकेंगे,

जैसे चमकता शिव चंद्र-भाल है.

नियति बोली, मैं साक्षी रहूंगी.  
(१८ जुलाई २०११- आज विश्वविद्यालय ने ६५ साल पूरे किए.)


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