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सोमवार, जुलाई 18, 2011

साक्षी नियति - साक्षी हरिसिंह











पैबन्द लगे कोट पहने,

तांगे पर पहाडिया चढ़कर.

बैरकों से निकाल नव-सांदीपनि निर्माण करते,

हर ईंट-पत्थर-चूने को पसीने से सींचते,

को नियति ने रोक कर पूछा-

हे सरस्वती साधक, लक्ष्मी पालक.

क्या तुम हरिसिंह गौर हो? “

माथे की बूंद को तर्जनी से झटक कर वह बोला-

नहीं, मैं नालंदा का शिल्पी हूँ,  पुनर्जन्म ले यहाँ आ पहुंचा हूँ.

जो भूल वहाँ की थी, यहाँ न दोहराऊंगा,

इस विश्वविद्यालय को अमरत्व-शिल्प से बनाऊंगा.

कई सदियाँ इसको छूकर गुजरेंगी,

और ये बेबाक खड़ा रहेगा.

इसके विद्यार्थी साफल्य-क्षतिज पर चमकेंगे,

जैसे चमकता शिव चंद्र-भाल है.

नियति बोली, मैं साक्षी रहूंगी.  
(१८ जुलाई २०११- आज विश्वविद्यालय ने ६५ साल पूरे किए.)


सोमवार, जुलाई 11, 2011

ट्रेनें

हाँ ट्रेनें, नहीं, नहीं रेलगाड़ी नहीं.
रेलगाड़ी हो तो हो- खोमचे वालों-चाय वालों-अजनबी दोस्तों की.
या फिर हो, घर-प्रियजन-सपनों तक पहुचने की आतुरता सजोते यात्रियों से खचा-खच.

न जाने ये कब ट्रेन में बदल जाती.

जब न्यूज़ चैनलस् वालों को कुछ जल्दी हो, जल्दी से कुछ बताने की.
या फिर अधिकारीयों को अपने प्रवाक्तिक वक्तव्य तैयार करने की.
या फिर रेल मंत्री का अपने इस्तीफा बनाने की.
शायद तब होती होगी-
जब ट्रेन की बातें टीवी पर आने लगे,
और आने लगे नंबर.
रुलाते-भयभीत करने वाले नंबर.

शनिवार, जुलाई 09, 2011

वसुधा का नेता कौन हुआ?(रामधारी सिंह दिनकर)

सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
शूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।

रक्षाबंधन 2018