जिंदगी या जीवन, किसने
जाने इसके ताने-बाने.
कई रंगों के धागे में बुने हैं कैसे ये तो बस ऊपरवाला जाने.
एक धागा है, बचपन का,
इसमें लड़कपन की कहानी है ,
बेफिक्री के रंगों को देखो अजब रवानी है.
बचपन की आँखों में दिखते सवाल है कितने अनजाने.
जिंदगी या जीवन...
दूजा धागा जवानी है, रंग अनोखे दिख लाएगी,
सोने सी है जिसकी सीरत हर पल सहेजी जाएगी.
सपनों और तमन्नाओं के दिखते कैसे बदलते माने,
जिंदगी या जीवन...
तीसरा धागा, बुढापा का, जो आखिर में आता है,
क्या किया – क्या न किया,
क्यों किया – क्यों न किया,
बस इसमें उलझा नज़र आता है.
धागे सारे उधड़ते जायेंगे, हो जायेंगे रंग पुराने,
जिंदगी या जीवन...
Translate
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
-
अटलजी को उनके ८८वे जन्मदिवस पर बहुत बहुत शुभकामनाएँ... ईश्वर उनको दीर्घायु और सुखी एवं स्वास्थवर्धक जीवन प्रदान करें.. अटलजी की कुछ कवित...
-
मैंने ये १३ अक्टूबर १९९९ को लिखा था. इस दिन स्मृतिशेष बाबा त्रिलोचन सागर विश्वविद्यालय(म.प्र.) छोड़ के हरिद्वार रहने जा रहे थे. जहाँ उन्...
-
वो देश, वो लोग खोजते पानी मंगल चाँद पर, भेजते मशीनी मानव जाने कितने खर्चीले अभियान पर, आनंद गीत गाते, उत्सव भी मानते, दिख जाती हिम सद...