हाँ ट्रेनें, नहीं, नहीं रेलगाड़ी नहीं.
रेलगाड़ी हो तो हो- खोमचे वालों-चाय वालों-अजनबी दोस्तों की.
या फिर हो, घर-प्रियजन-सपनों तक पहुचने की आतुरता सजोते यात्रियों से खचा-खच.
न जाने ये कब ट्रेन में बदल जाती.
जब न्यूज़ चैनलस् वालों को कुछ जल्दी हो, जल्दी से कुछ बताने की.
या फिर अधिकारीयों को अपने प्रवाक्तिक वक्तव्य तैयार करने की.
या फिर रेल मंत्री का अपने इस्तीफा बनाने की.
शायद तब होती होगी-
जब ट्रेन की बातें टीवी पर आने लगे,
और आने लगे नंबर.
रुलाते-भयभीत करने वाले नंबर.
Translate
सोमवार, जुलाई 11, 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
-
अटलजी को उनके ८८वे जन्मदिवस पर बहुत बहुत शुभकामनाएँ... ईश्वर उनको दीर्घायु और सुखी एवं स्वास्थवर्धक जीवन प्रदान करें.. अटलजी की कुछ कवित...
-
मैंने ये १३ अक्टूबर १९९९ को लिखा था. इस दिन स्मृतिशेष बाबा त्रिलोचन सागर विश्वविद्यालय(म.प्र.) छोड़ के हरिद्वार रहने जा रहे थे. जहाँ उन्...
-
वो देश, वो लोग खोजते पानी मंगल चाँद पर, भेजते मशीनी मानव जाने कितने खर्चीले अभियान पर, आनंद गीत गाते, उत्सव भी मानते, दिख जाती हिम सद...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें