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सोमवार, जुलाई 11, 2011

ट्रेनें

हाँ ट्रेनें, नहीं, नहीं रेलगाड़ी नहीं.
रेलगाड़ी हो तो हो- खोमचे वालों-चाय वालों-अजनबी दोस्तों की.
या फिर हो, घर-प्रियजन-सपनों तक पहुचने की आतुरता सजोते यात्रियों से खचा-खच.

न जाने ये कब ट्रेन में बदल जाती.

जब न्यूज़ चैनलस् वालों को कुछ जल्दी हो, जल्दी से कुछ बताने की.
या फिर अधिकारीयों को अपने प्रवाक्तिक वक्तव्य तैयार करने की.
या फिर रेल मंत्री का अपने इस्तीफा बनाने की.
शायद तब होती होगी-
जब ट्रेन की बातें टीवी पर आने लगे,
और आने लगे नंबर.
रुलाते-भयभीत करने वाले नंबर.

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