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सोमवार, मार्च 21, 2011

जापान

जिन नयनं में सपने हो, नींद कहाँ फिर उन नयनं में.
और जब सहसा नयनं में जाती सुनामी, चकरा जाते भू-कंप से.
नयनं में फिर विकृत दृश्य उभरते, जो कुछ पल पहले थे,सौम्य-सुघड.
फिर उन नयन में चैन कहाँ, जब पुनर्निर्माण के सपने हो.
हारने पर, लुट पिट जाने पर भी, जो पौरुष जनशक्ति सामर्थ हो,
लड़कर अपनी बसुधा को जो हर दम बचाए.
अय भोर सूरज देश निवासी तुमको शत्-शत् नमन.

शनिवार, मार्च 05, 2011

बुर्जुआ मोहल्ला

बुर्जुआ मोहल्ला गली के बाहर फिर छटवें दिन मन-मौजा,
घूमा;
रोक न सकूं अपने अंदर के वर्नेकुलर घोड़े को.
हर टाप पर निशान बनाते-बनाते फिर उस दायरे के छोर मिल जाएगा,
सातवें दिन.
बुर्जुआ मोहल्ला में फिर घोड़े को अस्तबल में बंद ये अरबी राह देखेगा,
पांचवे दिन की.
और देखेगा मुझे लम्पन-बुर्जुओं में घुलते-मिलते हुए.

रक्षाबंधन 2018