भारत में दिख रही हैं, फिर ईस्ट इंडिया कंपनी.
एक नहीं कई सौ, पुणे, बंगलौर, नॉएडा, गुडगाँव, हैदराबाद, कोलकत्ता
मुंबई और धीरे धीरे हर कहीं.
इस बार जो २०० साल नहीं कई सौ साल राज करने आ गई.
और लूटने आई हैं, भारत मन को.
प्राणों को छेदने सोने की सलाखों से.
बेटे-बटियो को दूर करती,
अपने माँ-बाप से.
खेतों से भूमि पुत्रों को,
स्फूर्ति से भरे युवा भारतियों को तोंद लिए;
असमय बृद्ध-मृतक करने.
और भारत में अपने काम के साथ,
भेज रही हैं, अपनी सड़ी-गली-मैली-बदबूदार संस्कृति.
कोई तो गाँधी अब, या फिर कोई मंगल, कोई आज़ाद,
ज्यादा नहीं बस थोड़ी से आंख खोलने को.
और बताने कि न्यू ईस्ट इंडिया कंपनीज़् के अलावा,
और भी जगह है रोटी.
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