वो गौरैया,
मीठा सा चहचहाना जिसका।
फुदकती इधर से उधर,
गर्दन ऊपर कभी नीचे करती,
खोजती जाने क्या क्या।
कभी फुर्र से उड़ जाती,
फिर घंटो बाद आती,
लेकर अपनी चहचहाट और कुछ तिनके,
भर देती मेरे बगीचे को,
अपरिजिता, गुड़हल, गुलमोहर, गेंदे
की पंखुड़ियों से,
बिखर जाते सुरीली सरसराहट से जो।
आज बगीचा है खाली,
हवा थी सरसराहट बिना,
था कुछ नहीं खोजता कोई,
खाली खाली वियावन सा सब।
गौरैया आई, लेकिन चुप सी
बोली सूरज फिर आया,
नदी साथ लेने।
पानी का टोकरा सरकाते,
बोला मैंने, तुम चहचहाओ बस,
पाताल के सीने में,
पानी तेरे लिए,
सूरज से मैंने छुपाया है।
1 टिप्पणी:
मायके आई बिटिया सी प्यारी गौरैया..😇 बहुत प्यारा लिखा .....😇😇😇🙂🙏
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