सरहद के उस पर से,
क्यों हमेशा,
आंसूओं का सामान आता है.
कभी बंदूक-तोप-बमों
के धमाके आते हैं.
और कभी बस चुपचाप
प्याज आ जाता है.
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रविवार, जनवरी 23, 2011
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1 टिप्पणी:
hey Nitesh... after a long gap something has come up from your pen. sure enough, it was worth to wait..! nice words, nice poem..!
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