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बस स्टॉप
हम रोज़ बस स्टॉप पर टकराते थे, मुस्कुराने लगे, देख एक दूसरे को। अब टकराते नहीं, मिलने लगे हैं जो रोज़। बेमतलब की बातें शुरू हुई कल से, और, आ...
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हिंदी Satire को एक नयी परिभाषा देने वाले हरिशंकर परसाई की एक रचना (‘सदाचार का ताबीज’ ) आपके सामने प्रस्तुत है इसका आनंद लिजए.... मुझे आशा ...
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हम रोज़ बस स्टॉप पर टकराते थे, मुस्कुराने लगे, देख एक दूसरे को। अब टकराते नहीं, मिलने लगे हैं जो रोज़। बेमतलब की बातें शुरू हुई कल से, और, आ...
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