चाँद और मंगल पर पानी

वो देश, वो लोग खोजते पानी मंगल चाँद पर,
भेजते मशीनी मानव जाने कितने खर्चीले अभियान पर,
आनंद गीत गाते, उत्सव भी मानते,
दिख जाती हिम सदृश सफेदी स्याह चाँद पर,
और कभी अंतरिक्ष  विजय के सपने भी सजोते,
भेजता तस्वीरें नदी की, लोहपुरुष, बैठा जो मंगल यान पर।

वो देश भेजते क्यों नहीं कुछ मानव,
उस स्याह महादुवीप पर,
जहाँ पर जाने के खर्चे होते बस कुछ सिक्कों भर.
जहाँ होती गर्म और भूख की वायु भयंकर,
होता सूरज होता अपने पूर्ण चरम पर।

हाँ! वहाँ होते भी है कुछ  मानव,
कहना है तो कह दो,
संकोच नहीं, हाँ कह दो खुल कर,
हमने देखे हैं भूख से बने जीवित कंकाल,
हाँ!कह दो हमने पा लिया जीवन यहाँ पर,
फिर उस जीवन को सहज बनाने,
करे कुछ अनुप्रयोग, करे कुछ  फिर खर्चे,
 इस गृह के अन्दर उस अपने जैसे गृह  को खोज कर।

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