-----मेरे सुख दुख---
मै सोचता ज्यादा हू,
इसलिए कुछ भावुक हू, या भावुक हू इसलिए सोचता हू।
भावनाए, दुख-सुख सोते नही, चाहे आन्खे बन्द भी हो।
विषय अनुराग है, सरस है विषयो की सुलभता सोचना लगा फ़िर दिन प्रति,
सुख मे कोमल तरन्गो से मन प्रफ़ुलित,
दुख के ताड से विलोडित होता।
समता के अभाव मे सुख से दुख और दुख से सुख को खोजता फ़िरता।
Translate
शनिवार, मार्च 06, 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
-
अटलजी को उनके ८८वे जन्मदिवस पर बहुत बहुत शुभकामनाएँ... ईश्वर उनको दीर्घायु और सुखी एवं स्वास्थवर्धक जीवन प्रदान करें.. अटलजी की कुछ कवित...
-
मैंने ये १३ अक्टूबर १९९९ को लिखा था. इस दिन स्मृतिशेष बाबा त्रिलोचन सागर विश्वविद्यालय(म.प्र.) छोड़ के हरिद्वार रहने जा रहे थे. जहाँ उन्...
-
वो देश, वो लोग खोजते पानी मंगल चाँद पर, भेजते मशीनी मानव जाने कितने खर्चीले अभियान पर, आनंद गीत गाते, उत्सव भी मानते, दिख जाती हिम सद...
1 टिप्पणी:
sochte to sabhi hain, par tu bhavuk ho kar sochata hai
tabhi to teri ankhon main nami abhi bhee baki hai
aur dill bhe dhadakta hai dost
एक टिप्पणी भेजें