जिन नयनं में सपने हो, नींद कहाँ फिर उन नयनं में.
और जब सहसा नयनं में जाती सुनामी, चकरा जाते भू-कंप से.
नयनं में फिर विकृत दृश्य उभरते, जो कुछ पल पहले थे,सौम्य-सुघड.
फिर उन नयन में चैन कहाँ, जब पुनर्निर्माण के सपने हो.
हारने पर, लुट पिट जाने पर भी, जो पौरुष जनशक्ति सामर्थ हो,
लड़कर अपनी बसुधा को जो हर दम बचाए.
अय भोर सूरज देश निवासी तुमको शत्-शत् नमन.
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सोमवार, मार्च 21, 2011
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