आईटी प्लेग

ये व्यंग १९९५-९८ के दरमियाँ लेखे गए थे, उसके बाद मुझे कंप्यूटर के चूहे ने काट लिया था और मुझे आईटी प्लेग हो गया । आज में उस प्लेग से उबरने की कोशिश कर रहा हूँ , शुरुआत की है अपने पुराने अख़बारों में प्रकाशित लेखों को यहाँ प्रस्तुत करके ।
आशा करता हूँ कि आप मुझे आईटी प्लेग से उबारने में मेरे सहायक बनेंगे, ताकि मैं हिन्दी देवी के मन्दिर में फ़िर प्रवेश कर सकूं ।
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धन्यवाद्,
नीतेश

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प्याज का प्यार

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कोतवाल भये उम्मीदवार

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बस स्टॉप

हम रोज़ बस स्टॉप पर टकराते थे, मुस्कुराने लगे, देख एक दूसरे को। अब टकराते नहीं, मिलने लगे हैं जो रोज़। बेमतलब की बातें शुरू हुई कल से, और, आ...