मेरे पिताजी की कविताओ में से कुछ चार लाइन...
जीवन तो एक मकड़जाल है,
आर-पार उलझन ही उलझन.
अगर कहें अटका-भटका मन,
तो तार-तार बुनता चल हे जन.
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बस स्टॉप
हम रोज़ बस स्टॉप पर टकराते थे, मुस्कुराने लगे, देख एक दूसरे को। अब टकराते नहीं, मिलने लगे हैं जो रोज़। बेमतलब की बातें शुरू हुई कल से, और, आ...
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कुछ प्रयास आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हू. आशा है, इस धागे को पूरा करेगे............. बरसातॅ होती है बाढ पर , सूखी जमीन रोती है रात भर. रात...
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