सड़ता अनाज

कोई तो खेतों से काकभगोड़ा निकाले,
या दे दाने चिड़िया को,
उस गेहूँ का, उस चावल का,
जो हर साल सड़ता गोदामों में।
या बनता फिर शराब,
परोसा जाता मयखानों में।
कोई तो झोपड़े-फुटपाथों से भूख भगाए.
या दे दाने उन इन्साओं को,
जिन पर है उनका नाम लिखा।

बस स्टॉप

हम रोज़ बस स्टॉप पर टकराते थे, मुस्कुराने लगे, देख एक दूसरे को। अब टकराते नहीं, मिलने लगे हैं जो रोज़। बेमतलब की बातें शुरू हुई कल से, और, आ...