भारत में दिख रही हैं, फिर ईस्ट इंडिया कंपनी.
एक नहीं कई सौ, पुणे, बंगलौर, नॉएडा, गुडगाँव, हैदराबाद, कोलकत्ता
मुंबई और धीरे धीरे हर कहीं.
इस बार जो २०० साल नहीं कई सौ साल राज करने आ गई.
और लूटने आई हैं, भारत मन को.
प्राणों को छेदने सोने की सलाखों से.
बेटे-बटियो को दूर करती,
अपने माँ-बाप से.
खेतों से भूमि पुत्रों को,
स्फूर्ति से भरे युवा भारतियों को तोंद लिए;
असमय बृद्ध-मृतक करने.
और भारत में अपने काम के साथ,
भेज रही हैं, अपनी सड़ी-गली-मैली-बदबूदार संस्कृति.
कोई तो गाँधी अब, या फिर कोई मंगल, कोई आज़ाद,
ज्यादा नहीं बस थोड़ी से आंख खोलने को.
और बताने कि न्यू ईस्ट इंडिया कंपनीज़् के अलावा,
और भी जगह है रोटी.
**समुन्दर**
(याद आई कुछ लाइनें)
१.
प्रलय तिमिर में संयम रख कर, सीख लेते हैं जो हार में जीना.
बिन तरकश तीरों के वो ही चीर देते हैं समुन्दर का सीना.
२.
प्यास कहती है चलो रेत नेचोड़े,
अपने हिस्से में समुन्दर आने वाला नहीं.
१.
प्रलय तिमिर में संयम रख कर, सीख लेते हैं जो हार में जीना.
बिन तरकश तीरों के वो ही चीर देते हैं समुन्दर का सीना.
२.
प्यास कहती है चलो रेत नेचोड़े,
अपने हिस्से में समुन्दर आने वाला नहीं.
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
बस स्टॉप
हम रोज़ बस स्टॉप पर टकराते थे, मुस्कुराने लगे, देख एक दूसरे को। अब टकराते नहीं, मिलने लगे हैं जो रोज़। बेमतलब की बातें शुरू हुई कल से, और, आ...
-
हिंदी Satire को एक नयी परिभाषा देने वाले हरिशंकर परसाई की एक रचना (‘सदाचार का ताबीज’ ) आपके सामने प्रस्तुत है इसका आनंद लिजए.... मुझे आशा ...
-
ये हवा जो बह के आती है, तुम्हारे छत से, कुछ सौंधी, कुछ ठंडी सी, हमारी छतों पे रौनक है भर देती. अगर बजती जो ढोलक हमारे घर पर, खनकती चूड़ी ज...
-
अटलजी को उनके ८८वे जन्मदिवस पर बहुत बहुत शुभकामनाएँ... ईश्वर उनको दीर्घायु और सुखी एवं स्वास्थवर्धक जीवन प्रदान करें.. अटलजी की कुछ कवित...