पहेलिका


सन्त वचन मुखरित,
मुख मण्डल सुरचित,
वाणी सदा मधु मिश्रित,
कर्म धर्म सदा प्रगटित,
समाज कल्याण हेतु धन संग्रहित.
वायदों के बस्ते,
अनुयायियों के गुलदस्ते,
सुखमय भविष्य के रस्ते,
खादी में ही जचते.
इदम् न संतम्,
इदम् न नायकम्,
इदम् न चारणः,
इदम् न सेवकः,
इदम् नस्तु महानेवचः,
अस्तु इदम् किम्,
बूझत अस्य तम् एव सर्वोच्चः

किसकी और कैसी आज़ादी

फिर सुबह टीवी पर दिखा १५ अगस्त.


कैलेन्डर से निकलकर घड़ी से होते हुए, लाल किले पर.

आज सारे टीवी के चैनल दिन भर एक दूसरे को चुनैती देंगे आज़ादी दिखाने के लिए.

घर के बाहर चौराहे के पर उस खम्बे पर तिरंगा लहरा दिया जायेगा,

जिस खम्बे ने परसों रात नशे में डूबी आज़ादी देखी.

लाउडस्पीकरों पर दिन भर "जरा याद करो कुर्बानी" और शाम होते "दर्दे डिस्को".

फिर देश में दिन भर आज़ादी और आज़ादी चलता रहेगा.

commonwealth खेलों के अधूरे stadiums सोचते होंगे,

कि वो भी आज़ाद होंगे, १० सालों से बनते रहने कि गुलामी से.

बेचारी किसान की बेटी अपनी शादी का सपना देख लेती अगर

इस आज़ाद देश की सूखी मिट्टी उसके पिता की नहीं लीलती.

यहाँ आज़ादी है तोड़-फोड की.

खुले आम या कभी फिर टीवी पर अपने बाजुओ को फुला फुला कर- ये

बताने की हम आज़ाद हैं.

कभी धर्म कभी प्रान्त कभी जाति, हर बात करने-कहने की आज़ादी लेकिन मुँह से नहीं.

मेरी उम्र के कई लोग अब यहाँ से भाग जाने की बात करते हैं,

उनको यहाँ आज़ादी कम लग रही या ज्यादा ? पता नहीं??

मगर दूसरे देश की गुलामी और अपने देश का आजदियाँ पर भारी पड़ने लगी हैं.

किसकी और कैसा है ये आज़ादी- पता चले तो बताएगा!!!

बस स्टॉप

हम रोज़ बस स्टॉप पर टकराते थे, मुस्कुराने लगे, देख एक दूसरे को। अब टकराते नहीं, मिलने लगे हैं जो रोज़। बेमतलब की बातें शुरू हुई कल से, और, आ...