भावनाएँ

मैं था मेरी भावनाएँ थी, विकल प्रवाहित,
वही सूरत आम सी अंकित सुन्दर मेरी आँखों में.
सहेजकर रखना चाहूँ हरदम.
भावनाएं उफान पर थी.
क्यों कोई समझे न इन्हें, जब समझ
जाते मेरी तरह सभी.
निभाना है नियति कहते,
निभा लिया इस प्रयास में कभी.
भावनाएं, कोमल कोपल हैं.
कोपलें मुझे-तुझे हम सबको है भाती.
पलाश की मखमली कोपलों ने जीता मेरा सुन्दर आग्रह,
जैसे आज मैंने तुझसे.
कोपलें कोपल न रहती.
मखमली सौम्या अवमंदित पल-पल .
पत्ता बन चिर स्थायी निखार लेती हैं,
जब पत्तों को होना पड़ता आंधी-पानी से हमजोल,
हो जाता तब अनदेखा किए जाने वाला,
त्रस्त टूटता पतझड़ में.
प्रेम सदाबहार बहे हर पल खिलता रहे ,
न मखमली कोपल हो,
न रुखा पत्ता पत्ता,
पतझड़ भी न हो,
भावनाएँ सिकुड़े नहीं ,
विस्तार लेती रहे.

बस स्टॉप

हम रोज़ बस स्टॉप पर टकराते थे, मुस्कुराने लगे, देख एक दूसरे को। अब टकराते नहीं, मिलने लगे हैं जो रोज़। बेमतलब की बातें शुरू हुई कल से, और, आ...