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शनिवार, जुलाई 12, 2008

मेरे पिताजी की कविताओ में से कुछ चार लाइन...

मेरे पिताजी की कविताओ में से कुछ चार लाइन...

जीवन तो एक मकड़जाल है,
आर-पार उलझन ही उलझन.
अगर कहें अटका-भटका मन,
तो तार-तार बुनता चल हे जन.

शुक्रवार, जुलाई 04, 2008

गरीबों की कहानी

गरीबों की कहानी
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गरीबों की कहानी,
छपकर किताबों में,
बुनकर फिल्मों में,
बिकती है महंगी।
पढ़-देख-सुनकर अमीरों ने जाने है किस्से ;
किस्से भूख, वेबसी, मुफलिसी के।
महसूस करने का स्वांग रचा जाता है वातानुकूलित कमरों में।
अनुभूति जागती फ़िर ।
गरीब पा जाते दया के सिक्के।
सिक्कों के खनक होती किंतु क्षणिक फ़िर नई किताब या फ़िल्म के आने तक।

मंगलवार, जुलाई 01, 2008

काला बादल

काला बादल

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देखो आसमान में कैसा उमड़ आया है काला काला बादल ।

लाल-काली मिट्टी में सोंधी खुश्बू भरने।

रक्षाबंधन 2018