मेरे पिताजी की कविताओ में से कुछ चार लाइन...
जीवन तो एक मकड़जाल है,
आर-पार उलझन ही उलझन.
अगर कहें अटका-भटका मन,
तो तार-तार बुनता चल हे जन.
Translate
शनिवार, जुलाई 12, 2008
शुक्रवार, जुलाई 04, 2008
गरीबों की कहानी
गरीबों की कहानी
----------------------
गरीबों की कहानी,
छपकर किताबों में,
बुनकर फिल्मों में,
बिकती है महंगी।
पढ़-देख-सुनकर अमीरों ने जाने है किस्से ;
किस्से भूख, वेबसी, मुफलिसी के।
महसूस करने का स्वांग रचा जाता है वातानुकूलित कमरों में।
अनुभूति जागती फ़िर ।
गरीब पा जाते दया के सिक्के।
सिक्कों के खनक होती किंतु क्षणिक फ़िर नई किताब या फ़िल्म के आने तक।
----------------------
गरीबों की कहानी,
छपकर किताबों में,
बुनकर फिल्मों में,
बिकती है महंगी।
पढ़-देख-सुनकर अमीरों ने जाने है किस्से ;
किस्से भूख, वेबसी, मुफलिसी के।
महसूस करने का स्वांग रचा जाता है वातानुकूलित कमरों में।
अनुभूति जागती फ़िर ।
गरीब पा जाते दया के सिक्के।
सिक्कों के खनक होती किंतु क्षणिक फ़िर नई किताब या फ़िल्म के आने तक।
मंगलवार, जुलाई 01, 2008
काला बादल
काला बादल
______________________
देखो आसमान में कैसा उमड़ आया है काला काला बादल ।
लाल-काली मिट्टी में सोंधी खुश्बू भरने।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
-
अटलजी को उनके ८८वे जन्मदिवस पर बहुत बहुत शुभकामनाएँ... ईश्वर उनको दीर्घायु और सुखी एवं स्वास्थवर्धक जीवन प्रदान करें.. अटलजी की कुछ कवित...
-
मैंने ये १३ अक्टूबर १९९९ को लिखा था. इस दिन स्मृतिशेष बाबा त्रिलोचन सागर विश्वविद्यालय(म.प्र.) छोड़ के हरिद्वार रहने जा रहे थे. जहाँ उन्...
-
वो देश, वो लोग खोजते पानी मंगल चाँद पर, भेजते मशीनी मानव जाने कितने खर्चीले अभियान पर, आनंद गीत गाते, उत्सव भी मानते, दिख जाती हिम सद...