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शनिवार, मई 17, 2008

टेक्नोक्रेट की अभिलाषा

चाह नहीं मैं बन नेता,
इधर से उधर निठल्ले फिरूं ।
चाह नहीं भ्रष्ट सांसद या विधायक बन ,
मीडिया में छा जाऊं, कोर्ट के द्वारे फिरूं ।
चाह नहीं अभिनेता बन कर अंडरवर्ल्ड को ललचाऊ।
चाह नही पुलिस के हत्थे चढूं
वकीलों से बच भाग्य पर इठलाऊँ।

चाह नही भ्रष्टाचारी के समर्थन में में मैं वोट डालूं।
मुझे बैठा लेना ओ एयरलाइन्स वाले; अमेरिका में देना तुम फैंक
बैंक बैलेंस डॉलर में बढ़ने जहाँ जायें टेक्नोक्रेट अनेक।
[26/06/2001]

बुधवार, मई 14, 2008

क्यों है...

कौरव कौंन , पांडव कौंन टेडा सवाल क्यों है।
चारों और फैला शकुनी का कूटजाल क्यों है।
भरी सभा में पंचाली अपमानित है, तो क्यों है।
अगर युद्ध होना ,तो क्यों होना है।
चाहे राजा कोई बने प्रजा को क्यों रोना है।

मंगलवार, मई 13, 2008

जन्मदिन हर साल.



हर साल आती है १३ मई,

और फ़िर हर साल की १२ मई को कुछ गुप्त मंत्रणा करते हैं, मेरे प्रियजन,

मुझे अचंभित करने को.

हर साल नए स्वाद का केक मिलता है फ़िर; गुप्त मंत्रणा का प्रतिफल.

रात में ही घड़ी के कांटे जब मिल जाते तो,

मेरे पूज्य-मेरे इश्वर ; मेरे माँ और पिताजी मुझे आशीष देते.

सुबह फ़िर ईश-वंदना नया जन्म दिवस देख पाने को.

इष्ठ जनों का शुभकामनाएं लेते लेते गुजर जाता सारा दिन.

रात में जोर पकड़ता जश्न का दौर.

फ़िर नींद में खो जाता, जन्मदिवस उत्सव श्रम को दूर करने.

फ़िर एक नई सुबह; मेरा स्वम्भू नया साल शुरु होता,

नई उम्मीदों; नई संभावनाओ; और नए शिखर को पाने को.

फ़िर एक नए जन्मदिन की राह देखता, मैं.....

शनिवार, मई 10, 2008

टूटते हुए लोग

मिल गयी मेरी कवितायों की कॉपी...

******** टूटते हुए लोग******

कुल्हाडों से कटते-कटते,

धडाम से धम्,

देख लिए टूटते लोग ।

जो टूटे नही उनकी कोपलों कों नोच नोच कर,

उनकी वृद्ध जड़ों को डरा डरा धमकाकर,

उनकी संगनी टहनियों कों छांटते हुए,

सूख जाने दिया एक दिन धम्म से टूट कर गिर जाने कों ।

आस-पास की आँखे बस करुणा से देखती रही सब एक अच्छे दर्शक की तरह ।

जिनकी भाग्यरेखा लम्बी रही वे बच गए टूट जाने से आज ।

कल भाग्य कुण्ड के खाली होते खड़े हो जायेंगे कुल्हडे...

उन्हें टूटने को कर देंगे मजबूर ।

रह जाएँगी हमेशा की तरह दर्शक आँखे, और घोर रुदन ।

केवल अटहास भरेगा कुल्हाडा,

साथ देगा उसका *वेंट जो ख़ुद बना है उन पेडों से ।

(*वेंट - कुल्हाडे या किसी औजार को पकड़ने का हत्था )

गुरुवार, मई 08, 2008

मील का वो पत्थर

मील का वो पत्थर
बस में से वो मील का पत्थर देखना
और सोचना की कैसे में समय के एक आयाम से दूसरे में घुस रहा हूँ ।
अभी कभी इस जीवन की गाड़ी में भी मैंने एक ऐसे मील के पत्थर को देखा ।
और अब मैं इस आयाम में खुश नही हूँ।
या फ़िर उस गुजरे आयाम ने मुझे उसके नशे का आदी बनाया दिया था ।
अब नशा उतर रहा है , साथ में जोरों का हँगओवर भी है .

मेरी कवितायों की कॉपी

***** मेरी कवितायों की कॉपी *****
पैसा कमाने की मशीन मैं आज ।
कल जो निश्चिंत लिखा करता था बहुत कुछ उस नवनीत के फुल स्कापे रजिस्टर पर ।
जिससे मैं एक रोजनामचे के मनिद लेख देता था कुछ स्वयं सिद्ध मुक्तक, नई कविता या तुकबंदी।
आज मुझे कुछ लिखने का मन कर रहा है।
गोया मैं निश्चिंत हों फिर से ।
लेकिन पता नही कहाँ खो गई है मेरी कवितायों की कॉपी ।
हो सकता है पूजा वाले कमरे मे रखे बिस्तरपेटी मे पुरानी किताबों और कापियों के साथ हो।
या न जाने माँ ने रद्दी वाले को न दे दी हो मेरी कवितायों की कॉपी ।
खोजना होगा मुझे अपनी कवितायों की कॉपी .
चलो जाता हूँ मै खोजने अपनी कवितायों की कॉपी ।

रक्षाबंधन 2018